Saturday, August 3, 2013

इश्वर का अन्याय

"स्वामी, सब लोगों का अगर निर्माण ईश्वर ने किया है, तो सबको सामान सुख और दुःख क्यूँ नहीं दिए?" पार्वतीजी आज उदास लग थी।
"आपको ऐसा क्यूँ लग रहा है, प्रिये?" शिवजी ने मुस्कुराते हुए पुछा।
"अब यह देखिये, ईश्वर ने इतनी सुन्दर दुनिया बनाई तो उसको देखने के लिए कुछ लोगों को आँखों की रौशनी नहीं दी।  किसीको इतना धन दिया की उनको उसकी कदर नहीं, तो किसीको दो वक़्त की रोटी भी नहीं मिलती।  इतना ही नहीं, कुछ लोग तो देख के भी दुसरो का दुःख अनदेखा कर देते है। कई लोगों के पास अधिक धन है, लेकिन वह दूसरों की मदद भी नहीं करते।  तो उनके विशेषाधिकृत होने का क्या मतलब हुआ?" लगता है माँ आज कुछ ज्यादा ही परेशान है।
"अगर ईश्वर सबको एक जैसा बनाते तो सब एक दुसरे से क्या सीखते? एक दुसरे के लिए हमदर्दी, प्यार, अपनापन कैसे आता?" भोलेनाथ ने जवाब दिया।
"अगर हमदर्दी होती तो इतने सारे लोग भूखे सोते? इतने सारे लोग आँखों की रौशनी से वंचित रहते?" पार्वतीजी और गुस्से हो गयी।
"हमदर्दी का मतलब सिर्फ दुसरो की मदद करना नहीं। सिर्फ दान करने से किसीका दिल बड़ा नहीं हो जाता।  लोग दान किये बिना भी दया भाव रख सकते है।" शिवजी ने बड़े प्यार से बोल।
"अच्छा? और किस तरह हो सकता है?" माताजी ने क्रोधित होकर पूछा।
"किसीका अच्छा करने से कई ज्यादा अच्छा किसीका बुरा नहीं करना है। अच्छाई की मौजूदगी से कई ज्यादा ज़रूरी बुराई की अनुपस्थिति है।"
"आपका नाम भूतनाथ नहीं, अदभुतनाथ होना चाहिए था।" माँ मुस्कुरायी। 

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