कैलाश परबत पे शिवजी शाम की चाय की चुस्की भर रहे थे। उनके गले पर लिपटा हुआ सांप शिवजी के कान में बोला "स्वामी, आज माँ को दुर्गा माँ का रूप लेने पे मजबूर न करें", और हलके से मुस्कुराया।
"मैं सब सुन रही हूँ", पार्वतीजी बोली। उन्होंने गुस्से से देखा और खुद ही हंस पड़ी।
"स्वामी, आपको क्या लगता है, जो राम और रावण के बीच हुआ, वोह होना चाहिए था?", पार्वतीजी ने शिवजी को पूछा।
"यह कैसा सवाल है, प्रिये?" शिवजी मुस्कुराये।
उनको पता था माँ यह सवाल क्यूँ कर रही है। कल विजयादशमी है, और कल के दिन, उन्होंने दुर्गा माँ का रूप धारण करके महिषासुर का विनाश किया था। और कल ही के दिन, विष्णुजी के सातवे अवतार, श्री राम ने भी रावण नाम के दानव का नाश किया था। अगर सरल शब्दों में कहें तो बुराई पे अच्छाई की जीत हुई थी।
लेकिन, माँ को यह हरगिज़ मंज़ूर नहीं था की मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अपनी पत्नी सीता की अग्निपरीक्षा ली थी। उनके अनुसार किसी भी स्त्री का अपमान माफ़ी के पात्र नहीं है, फिर चाहे वोह भगवन ही क्यूँ न हो।
"रावण तो आपके परम भक्त थे ना?" पार्वतीजी ने पूछा।
"प्रिये, आपको ऐसा क्यूँ लगता है की रावण निर्दोष थे? यदि श्रीराम से गलतियां हुई है, तो रावण की भी भूल थी। वह मेरे भक्त ज़रूर थे, लेकिन उनको नारायण से मिलना था। उनको ज़िन्दगी और मौत के बीच का यह सेतु पार करने के लिए उन्हें विष्णुजी के हाथो ही अपनी मौत मंज़ूर थी। इसी मोह में उन्होंने पूरी लंका जला डाली। क्या यह सही था? क्या आपका अहम् इतना बड़ा है की आप सही और गलत के बीच में फर्क ही न कर पाये? रावण का सबसे बड़ा दुश्मन श्रीराम नहीं, उनका खुद का अहंकार था।"
"लेकिन..."
"और यह बात आपसे बेहतर और कौन जान सकता है? आखिर महिषासुर मर्दिनी तो आप ही है", शिवजी हलके से मुस्कुराये।
"आप से तो जीतना मुश्किल है।"
"लेकिन आप से तो बड़े बड़े हार जाते है", शिवजी ने शरारती मुस्कान दी।
"हमेशा सचाई की ही जीत होती है", शिवजी के गले पे लिपटा हुआ सांप बोला, और सब हंस पड़े।
PS: No disrespect meant.
"मैं सब सुन रही हूँ", पार्वतीजी बोली। उन्होंने गुस्से से देखा और खुद ही हंस पड़ी।
"स्वामी, आपको क्या लगता है, जो राम और रावण के बीच हुआ, वोह होना चाहिए था?", पार्वतीजी ने शिवजी को पूछा।
"यह कैसा सवाल है, प्रिये?" शिवजी मुस्कुराये।
उनको पता था माँ यह सवाल क्यूँ कर रही है। कल विजयादशमी है, और कल के दिन, उन्होंने दुर्गा माँ का रूप धारण करके महिषासुर का विनाश किया था। और कल ही के दिन, विष्णुजी के सातवे अवतार, श्री राम ने भी रावण नाम के दानव का नाश किया था। अगर सरल शब्दों में कहें तो बुराई पे अच्छाई की जीत हुई थी।
लेकिन, माँ को यह हरगिज़ मंज़ूर नहीं था की मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अपनी पत्नी सीता की अग्निपरीक्षा ली थी। उनके अनुसार किसी भी स्त्री का अपमान माफ़ी के पात्र नहीं है, फिर चाहे वोह भगवन ही क्यूँ न हो।
"रावण तो आपके परम भक्त थे ना?" पार्वतीजी ने पूछा।
"प्रिये, आपको ऐसा क्यूँ लगता है की रावण निर्दोष थे? यदि श्रीराम से गलतियां हुई है, तो रावण की भी भूल थी। वह मेरे भक्त ज़रूर थे, लेकिन उनको नारायण से मिलना था। उनको ज़िन्दगी और मौत के बीच का यह सेतु पार करने के लिए उन्हें विष्णुजी के हाथो ही अपनी मौत मंज़ूर थी। इसी मोह में उन्होंने पूरी लंका जला डाली। क्या यह सही था? क्या आपका अहम् इतना बड़ा है की आप सही और गलत के बीच में फर्क ही न कर पाये? रावण का सबसे बड़ा दुश्मन श्रीराम नहीं, उनका खुद का अहंकार था।"
"लेकिन..."
"और यह बात आपसे बेहतर और कौन जान सकता है? आखिर महिषासुर मर्दिनी तो आप ही है", शिवजी हलके से मुस्कुराये।
"आप से तो जीतना मुश्किल है।"
"लेकिन आप से तो बड़े बड़े हार जाते है", शिवजी ने शरारती मुस्कान दी।
"हमेशा सचाई की ही जीत होती है", शिवजी के गले पे लिपटा हुआ सांप बोला, और सब हंस पड़े।
PS: No disrespect meant.
4 comments:
मन के किस कोने में है बैठा है रावण ये पता चलते ही उसे नोटिस भेजते हैं.. कोना खाली करने का :)
This post is totally appropriate as a script for an episode of Ramayan. :)
रावण कभी नही मरा
और ना ही मारा जा सकता है
रावण और राम केवल एक परिवर्तन है
एक यात्रा है अंधेरे की उजाले की और
अहंकार से आंनद की यात्रा है रामायण
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